‘वैध बलवंत सिंह जी’ लेखक की इच्छा थी कि जिन आयुर्वेदिक औषधियों से उन्हें चिकिस्ता के क्षेत्र में सफलता मिली और जिन्होंने सैकड़ों रोगियों की बिमारियों को सफलतापूर्वक दूर किया, इसीलिए इस ‘घर का वैध’ पुस्तक को सभी लोगों के शारीरिक लाभ को देखते हुए प्रकाशित कर दू । लेखक का मानना है कि यह अमूल्य ज्ञान मेरे जीवन के साथ ही समाप्त न होकर लम्बें काल तक मानवमात्र को लाभ पहुँचाती रहे । आज के आधुनिक युग में बहुत से ऐसे वैध भी है जो अनुभूत योगों को गुप्त रखने की परिपाटी प्रचलित है लेकिन ‘वैध बलवंत सिंह’ लेखक का मानना है कि ऐसी धारणा को मानव धर्म के विरुद्ध मानता हूँ । इसीलिए लेखक ने प्रत्येक योग को स्पष्टरूप से प्रकाशित करना अपना कर्तव्य समझते हुए यह सामान्य भेंट अपने प्यारे पाठकों को शीघ्र अति शीघ्र लाभ पहचाने के लिए समर्पित है ।
‘घर का वैध’ पुस्तक में लेखक ने केवल वाही प्रयोग लिखे है जिनका उन्होंने रोगियों पर प्रयोग किया है । लेकिन रोग की स्थिति और रोगी की दशा को देखकर उचित अनुमान के साथ रोगी को औषध देना वैध की योग्यता पर निर्भर करता है । ‘घर का वैध’ पुस्तक में लेखक ने प्राचीन आयुर्वेद के आचार्यों की शैली के अनुसार बुखार कि चिकित्सा से प्रारम्भ करते हुए अनुक्रम से सब रोगों की चिकित्सा विधि लिखी गई है । लेखक ने ‘घर का वैध’ पुस्तक के पाँच भाग लिखे हुए थे । लेकिन पाठकों की सुविधा को मध्येनज़र रखते हुए अब ‘घर का वैध’ पुस्तक के पाँचों भागों को एकत्र किया गया है ।
‘वैध बलवंत सिंह जी’ लेखक का मानना है कि कि मेरे इस प्रयास से असाध्य रोगों से दुखित किसी भी आत्मा को कुछ लाभ पहुँचा सका तो मैं अपने परिश्रम क सफल समझूंगा ।