यह वर्तमान में उपलब्ध शुद्ध संस्करणों में से एक है।
अंग्रेजों का यह सिद्धान्त रहा है If you want to destroy a nation, destroy its history and the nation will perish of its own accord. अर्थात् यदि तुम किसी राष्ट्र को नष्ट करना चाहते हो तो सर्वप्रथम उस राष्ट्र के इतिहास को समाप्त कर दो, राष्ट्र स्वयमेव नष्ट हो जायेगा । इसी सिद्धान्त की पालना करते हुए नालन्दा विश्वविद्यालय में जलाया गया प्राचीन और प्रमाणित इतिहास इस बात गवाही देता है कि भारत के दुश्मनों ने भारत को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । जहाँ एक तरफ इसी सिद्धान्त को पूरित करने के उद्देश्य से पाश्चात्य ईसाई लेखकों ने हमारे इतिहास को नाना प्रकार से विकृत क्र आर्यजाति को रसातल में पँहुचाने का प्रयत्न किया । वही दूसरी तरफ दासता-युग की शिक्षा ने हमारे देश के युवक और युवतियों, लेखकों, प्रोफेसरों और रिसर्च स्कालरों के मस्तिष्कों को विकृत कर डाला । जिसका खामियाजा हम आज तक भुगत रहे है ।
संसार की विभिन्न भाषाओँ में जो उच्चकोटि के महाकाव्य हैं उनमें महर्षि वाल्मीकि प्रणीत रामायण का स्थान सर्वोच्च है । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि संसार भर के अन्य काव्यों में हमें महाकाव्य की अन्य विशेषताएँ भले ही मिल जाएँ, परन्तु श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में जो आस्तिकता, धार्मिकता, प्रभुभक्ति, उदात्त एवं दिव्य भावनाओं और उच्च नैतिक आदर्शों का वर्णन मिलता है वह अन्य ग्रन्थों में दुर्लभ है । रामायण में छह काण्ड समाहित है और प्रत्येक काण्ड शिक्षाओं और आदर्शों से ओत-प्रोत है । लेकिन छह में से लेखक ने सुन्दरकाण्ड को सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है क्योंकि इस काण्ड में महावीर हनुमान के शौर्य और वीर्य का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया गया है ।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण प्राचीन आर्य (सर्वश्रेष्ठ) सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है । मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी एक आदर्श मित्र, आदर्श भाई, आदर्श पति और आदर्श सम्राट भी हैं । लक्ष्मण एक ऐसे आदर्श भाई हैं जो ज्येष्ठ भाई के दुःख और सुख में, हानि और लाभ में सदा उनके साथ रहते हैं, चाहे वे नगर में हों या जंगल में । भरत एक ऐसे भाई है जो चक्रवर्ती राज्य को ठोकर मार देते हैं । वही रामायण में रावण और बाली दो ऐसे पात्र हैं जो आरम्भ में फलते और फूलते हैं, परन्तु अन्त में अपने कर्मों का फल भी पाते हैं । माता सीता एक ऐसी नारी रत्न हैं जो मन, वचन और कर्म से अपने पति में अनुरक्त हैं । युवकों एवं युवतियों के चरित्र-निर्माण के लिए रामायण से बढ़कर और कोई शिक्षापूर्ण एवं नैतिक आदर्शों से युक्त ग्रन्थ नहीं हो सकता है ।