अति प्राचीन काल से ही भारतीय विद्वान अपने इतिहास को लिखकर सुरक्षित किया है | लेकिन मुस्लिम शासन काल के दिनों में ही यह परम्परा कुछ सहज हुई | लेखक ने ‘भारतीय संस्कृती का इतिहास’ पुस्तक में भूमि-सृजन से आरम्भ करके उत्तरोत्तर-युगों के कर्म से घटनाओं का उल्लेख किया है |
भारतीय सरकार के इण्डियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (I.A.S) ट्रेनिंग स्कूल में लेखक को पाँच वर्ष तक भारतीय-संस्कृति पर व्याख्यान देने का अवसर प्राप्त हुआ | अब धीरे –धीरे लेखक को अनुभव होने लगा की यूरोपीय लेखकों ने भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास का जो कलेवर खड़ा किया है, वह तर्क, विज्ञान और यर्थाथ-इतिहास की कसौटी पर खरा नहीं उतरता | जब लेखक को ज्ञात हुआ कि भारतीय छात्रों को भारतीय-परम्परा का ज्ञान भूल-सा रहा है, और भारतीय संस्कृति के इतिहास का पुनर्जीवन आवश्यक है | तब लेखक ने कालानुसार भारतीय इतिहास और उसके विभिन्न अंगो को पढ़ना आरम्भ कर दिया | लेखक ने खूब पढ़कर समझकर ‘भारतीय संस्कृति का इतिहास’ पुस्तक को बहुत ही सरल और स्पष्ट शब्दों में लिखा है | यह पुस्तक वैदिक भारतीय संस्कृति का दिग्दर्शन –मात्र है | अतः ‘भारतीय संस्कृति का इतिहास’ पुस्तक को पढ़कर साधारण छात्र और विद्वान् दोनों लाभ उठा सकेंगे |
यह पुस्तक ‘भारतीय संस्कृति का इतिहास’ भारत के क्रान्तिकारी प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के शासनकाल में लेखक “पंडित भगवदत्त रिसर्च स्कॉलर’ द्वारा प्रकाशित हुआ था | जोकि आज वर्तमान समय तक अपनी पहचान बनाए हुए है |
जब पंडित नेहरु जी देखते रह गए-
कैम्प कॉलेज, दिल्ली में पंडित भगवद्दत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा में छात्रों को भारतीय इतिहास पढ़ाते थे | एक दिन पंडित नेहरु ने कॉलेज में आकर इन छात्रों से भारतीय इतिहास पर कुछ प्रश्न किए | पंडित भगवद्दत्त द्वारा प्रदत्त इतिहास ज्ञान के आधार पर जब छात्रों के उत्तर को पंडित नेहरु ने सुना तो उनका चमत्कृत होना स्वाभाविक था | उन्होंने पण्डितजी के बारे में पूरी जानकारी ली और उनके गंभीर इतिहास ज्ञान की प्रशंसा की |