अक्सर देखा जाता है कि यहूदी, पारसी, जैनी, ईसाई, मुस्लिम व आदि अन्य मत भी स्वयं द्वारा मनगढ़त ‘फेस्टिवल’ को भी बड़े धूम-धाम से मनाते आ रहे है । लेकिन सनातन धर्म को मानने वाले अनुयायी ऋषि मुनियों द्वारा प्रदत्त मूल ‘त्यौहारों’ को मानने में या तो हिचकिचा उठते है या आधुनिक जीवन के नंगेपन ने उन्हें सनातन संस्कृति का प्रतिक ‘त्यौहारों’ से दूर कर दिया है । जहाँ यूरोपीय देश ‘अमावस्या’ और ‘पूर्णिमा’ के दिन हवन आदि रचते है वही हम यूरोप जैसे देशों की पाश्चात्य संस्कृति को अपना अपने ऋषि-मुनियों को दुत्कार रहे है ।
पुनः अपनी संस्कृति को गुंजायमान करने के लिए लेखक ने ‘आर्य पर्वपद्द्ति’ नामक पुस्तक की रचना की है । लेखक ने ‘आर्य पर्वपद्द्ति’ नामक पुस्तक में वर्ष भर में मनाए जाने वाले त्यौहारों के पीछे का कारण और पद्दती का बहुत ही सरल भाषा में वर्णन किया है । वर्ष भर में मनाएं जाने वाले ‘चौदह त्यौहार’ इस प्रकार है :-
- नवसंवत्सरोत्सव 2. आर्यसमाज का स्थापना दिवस 3. श्री रामनवमी 4. हरीतृतीया (हरियाली तीजों) 5. श्रावणी उपाकर्म 6. कृष्णाष्टमी 7. विजयादशमी 8. दयानन्दनिर्वाण (दीपावली) 9. मकरसंक्रान्ति 10. वसन्तपञ्चमी 11. सीताष्टमी 12. दयानन्दबोधरात्रि 13. लेखराम वीरतृतीया 14. वासन्ती नवसस्येष्टि (होली) ।
‘आर्य पर्वपद्द्ति’ पुस्तक में प्रत्येक त्यौहार के सम्बन्ध में एक विस्तृत और पूर्ण रूप से बहस की गई है । लेखक ने प्रत्येक त्यौहार के पहलू और उसकी उपयोगिता दिखलाने का पूर्ण प्रयत्न किया है । प्रत्येक त्यौहार की पद्द्ति को पूर्ण करने के लिए उपयोगी मंत्र भी दिए गए है । ‘आर्य पर्वपद्द्ति’ पुस्तक को पाठकों तक पहुँचाने के लिए लेखक ने अधिक पुरुषार्थ किया है । ताकि हमें अपने त्यौहारों के मनाने के मूल कारण पता चले और हम पुनः अपनी संस्कृति की और रुख करे ।