हवाई जहाज - विमान विद्या का सम्पूर्ण इतिहास
हवाई जहाज - प्राक्कथन
पिछले एक दशक से प्राचीन भारतीय हवाई जहाज Technology पर भारतीयों में ज्ञान प्राप्त करने की रूचि बढ़ी है। किन्तु कही भी इस विषय पर विस्तार से जानकारी तथा विमान शास्त्र आदि जैसे प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। इस लेख में कोई रटी-रटाई जानकारी नहीं, अपितु अत्यंत विस्तार से इतिहास व पुस्तकें संकलित करके दी गयी है। यह लेख अत्यंत गहन तथ्यों व जानकारियों से लबालब भरा हुआ है। संभवतः इस विषय का इतना विस्तृत लेख गूगल पर उपलब्ध नहीं है। आशा करता हूँ आप इस लेख को अंत तक धैर्य पूर्वक पढ़कर मेरे पुरुषार्थ को सफल बनायेंगे। एक प्रार्थना यह है कि इस लेख को कॉपी करके किसी के पास भेजने की अपेक्षा इसके LINK को शेयर करें व अपनी वेबसाइट आदि पर देवें क्योंकि कॉपी करके भेजने में धीरे धीरे मूल लेख को स्वार्थवश लोग अपने अनुसार बदल लेते है व लेखक के मूल भाव से लोग अनजान रह जाते है।
- राहुल आर्य
संस्थापक, Thanks Bharat
विषय सूचि
- भूमिका
- गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या लाभ
- विश्व इतिहास की 2 बड़ी घटनाएं
- सर्वप्रथम विमानों का इतिहास किसने बताया ?
- उपरिचर राजा और ए.ओ.ह्यूम
- प्रथम आविष्कारक कौन?
- महाभारत में विमान विद्या के साक्ष्य
- 500 ई. तक भी भारत में हवाई जहाज थे
- धनुर्वेद के ढाई पन्ने
- वेदों में हवाई जहाज
- भांप का इंजन
- पुष्पक विमान - रामायण में विमान विद्या
- भारत में Hawai Jahaj के अनेकों उदाहरण
- विमान शास्त्र (free download)
- शिवकर बापूजी तलपड़े
- उपसंहार व भावी अत्यंत महत्पूर्ण लेख
- पुस्तकें
भूमिका
नष्टे मूले नैव फलं न पुष्पम् ।।
जब वृक्ष का मूल ही काट दिया जाये तो फल-फूल कहां से हो ?
हवाई जहाज की खोज को विज्ञान की सर्वोत्कृष्ट देंन माना जाता है। यह खोज मनुष्य को दांतों तले ऊँगली दबाने पर विवश कर देती है। आज सारी दुनिया स्वीकारती है कि 17 दिसंबर 1903 को राइट ब्रदर्स ने हवाई जहाज बनाकर उड़ाया था। दुर्भाग्यवश, अधिकांश भारतीय भी कहते और मानते है कि यह विद्या पश्चिम की देन है। पाठकों, ऐसा कहना इतिहास का सबसे बड़ा झूठ है। विमान विषय पर यह विस्तृत लेख इस झूठ का पूर्णतः पटाक्षेप कर देगा।
गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या लाभ ?
आज जब भी कोई प्राचीन भारतीय ज्ञान/विज्ञान व समृद्धि की बात करता है तो वहीं भारतीय कहते है "क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ते हो ?" अतः इस अत्यंत महत्पूर्ण विषय को प्रारंभ करने से पूर्व इसका उत्तर देना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
'आज में जियो' , 'कल किसने देखा' , 'जो बीत गया सो बीत गया' जैसी बातें करने वाले ही इतिहास से सबसे ज्यादा लाभ उठाते है। मनुष्य इतिहास से घिरा हुआ है, भरा हुआ है। हम छापा (फ़ोटो) लेते है, चलचित्र (वीडियो) बनाते है। क्यों? क्योंकि हम अपने इतिहास को सुरक्षित करना चाहते है। मैंने देखा है कई बार गहन जाँच के लिए मुर्दों को भी उखाड़ा जाता है। हमारा प्रत्येक कर्म भूत बन जाता है लेकिन फल भविष्य में ही मिलता है।
नौकरी का प्रत्येक दिन भूत बन जाता है किन्तु वेतन भविष्य में मिलता है। यदि हमने नौकरी ठीक से नहीं की थी, तो वेतन में समस्याएँ आएंगी या अपमानित होना पड़ेगा। यदि हमारा भूत अच्छा है तो कोई समस्या नहीं। एक छोटा बच्चा दो दिन विद्यालय नहीं जाता तो तीसरे दिन उसे डर लगेगा लेकिन यदि उसका भूत अच्छा है, उसने स्कूल से कोई अवकाश (छुट्टी) नहीं लिया था, गृहकार्य किया था तो उसे भविष्य में स्कूल जाने से डर नहीं लगेगा, प्रसन्न रहेगा और पुरे मन से आगामी (भावी) कार्य करता चला जायेगा।
यही एक राष्ट्र के साथ भी होता है। इतिहास हमारा वर्तमान में मार्गदर्शन करता है तथा हमारे स्वर्णिम भविष्य का आधार है। इतिहास को जानकर ही हम अपने पूर्वजों द्वारा की गलतियों को दोहराने से बच सकते है और जो गौरवपूर्ण कार्य आदि हो उनका अनुसरण करके सुख-समृद्धि की ओर बढ़ सकते है। इसलिए प्राचीन समय में राजा को प्रतिदिन 1 घड़ी इतिहास श्रवण करना अनिवार्य होता था।
विश्व इतिहास की 2 बड़ी घटनाएं
- 493 ई.पू. यूनान से फारस हार गया था। फारस के सम्राट डेरियस ने अपने नौकर से कहा कि वह प्रतिदिन उनके सामने आकर कहे "मालिक एथेंस वालों को स्मरण रखें" बाद में फारस यूनान से जीता था।
- लगभग 1700 वर्ष तक यहूदियों पर पहले ईसाईयों ने व फिर मुस्लिमों आदि ने अत्याचार किये। इनको अपना मुख्य पवित्र स्थल यरुशलम छोड़कर दर दर भटकना पड़ा। यहूदी जब कभी आपस में मिलते तो कहते "अगले वर्ष यरुशलम में मिलेंगे।" आज यरुशलम (इजराइल की राजधानी) पर यहूदियों का कब्ज़ा है।
अर्थात जिन्होंने भी अपने इतिहास को स्मरण रखा उन्होंने अपना खोया गौरव, अधिकार और ताकत प्राप्त कर ली और स्वाभिमान से अपनी व्यवस्थाएं चलाकर विश्वपटल पर छा गये। लेकिन भारतीय जन वैश्विक घटनाओं व इतिहास से आँख मूंदे बैठा है। अब सोये हुए व्यक्ति को उठा सकते है लेकिन जिसने सोने का नाटक कर रखा है उसको कौन उठाये? (Join Thanks Bharat Family On YouTube and Google)
सर्वप्रथम विमानों का इतिहास किसने बताया ?
18वीं शताब्दी में सर्वप्रथम "मनुष्य विमान बनाकर उड़ सकते है" कहने वाले आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती ही थे। वर्तमान समय में उन्होंने ही प्राचीन हवाई जहाज विज्ञान के विषय को जनसामान्य का विषय बनाया। उन्होंने ताबड़तोड़ कार्यक्रम करते हुए प्रचुर मात्रा में प्रमाण दिखाते हुए प्राचीन भारत में विमानों का इतिहास बताना शुरू किया। सेकड़ों वर्षों से गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी हिन्दू जाति को स्वयं अपने स्वर्णिम इतिहास संशय हो रहा था। वो सबकुछ यूरोप की देन मानने लगे थे।
उपरिचर राजा और ए.ओ.ह्यूम
जब रेलगाड़ी के आविष्कार के नाम पर कुछ गुलाम मानसिकता के भारतीय अंग्रेजों की प्रशंसा करते थे तो स्वामी दयानन्द ने 10 अषाढ़ शुदी 1932 (1874) को दहाड़ते हुए कहा था कि
"उपरिचर नामक राजा था। वह सदा भूमि को स्पर्श न करता हुआ हवा ही में फिरता रहता था। पहले के जो लोग लड़ाइयाँ लड़ते थे, उन्हें विमान रचने की विद्या भली प्रकार विदित थी। मैंने भी एक विमान रचना का पुस्तक देखा है। भाई, उस समय दरिद्रों के घर भी विमान थे (जैसे अमेरिका में आज लगभग लोगों के पास गाड़ी है)। भला सोचें कि उस व्यवस्था के सन्मुख रेलगाड़ी की प्रतिष्ठा क्या हो सकती है?"
ए.ओ.ह्यूम जिन्होंने बाद में 28 दिसम्बर 1885 को मुंबई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। उन्होंने स्वामी दयानन्द का उपहास (मजाक) करते हुए कहा था कि "व्यक्ति का उड़ना गुब्बारों तक ही सीमित रह सकता है। यान बनाकर पक्षी की तरह तो केवल सपनों में ही उड़ा जा सकता है। स्वामी जी का दिमाग ठीक नहीं है।"
आज 133 वर्ष कांग्रेस की स्थापना को हो चुके है। ए.ओ.ह्यूम का स्थान राहुल गाँधी ने ले लिया है किन्तु सोच में आज भी अंतर नहीं दिखाई पड़ता है। अस्तु, जब विमान बनने लगे तब एक दिन उदयपुर में ए.ओ.ह्यूम ने स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती जी से अपने उपहास के लिए क्षमा मांगी थी।
प्रथम आविष्कारक कौन?
विमान का प्रथम आविष्कारक कौन था ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए हुए स्वामी दयानन्द ने कहा था कि
"कला-कौशल की व्यवस्था करने वाला विश्कर्मा नामक एक पुरुष हुआ है। विश्वकर्मा परमेश्वर का भी एक नाम है और एक शिल्पकार का भी था। अस्तु, विश्वकर्मा ने विमान की युक्ति निकाली। फिर इस विमान में बैठकर आर्य लोग इधर-उधर भ्रमण करने लगे।"
विश्वकर्मा नामक महान शिल्पी का उल्लेख अनेकों इतिहास ग्रंथों में आता है। इससे स्पष्ट पता चलता है कि वेदों को पढ़कर सर्वप्रथम विमान का आविष्कार विश्वकर्मा ने करोड़ों वर्ष पूर्व ही कर दिया था।
महाभारत में विमान विद्या के साक्ष्य
द्रुपद को लगता था कि लाक्षागृह में पाण्डव जलकर नहीं मरे। वह अपनी पुत्री का विवाह अर्जुन से करना चाहता था। इसलिए द्रौपदी के पिता राजा द्रुपद ने स्वयंवर की सुचना एक ऐसे यंत्र से दी जो आकाश में घूमता था ताकि यदि पाण्डव कही हो तो वो उस सुचना को सुन सके। (वैसे बाद में द्रौपदी का विवाह युधिष्ठिर से हुआ था) (Join Thanks Bharat Family On YouTube and Google)
यन्त्रं वैहायसं चापि कारयामास कृत्रिमम् ।
तेन यन्त्रेण समितंराजा लक्ष्यं चकार सः ।। - महाभारत,आदिपर्व
अर्थात् राजा द्रुपद ने एक कृत्रिम आकाश यन्त्र भी बनाया ।
उस यंत्र के छिद्र के ऊपर उन्होंने उसी के बराबर का लक्ष्य
तैयार कराकर रखवा दिया।
श्रीकृष्ण व अर्जुन पाताल (अमेरिका) में अश्वतरी अर्थात् जिसको अग्नियान नौका कहते है। उसपर बैठकर पाताल में जेक महाराज युधिष्ठिर के यज्ञ में उद्दालक ऋषि को लेके आये थे। तब युधिष्ठिर श्रीकृष्ण से कहता है "त्वत्कृते पृथिवी सर्वा मद्वशे कृष्ण वर्तते ।" हे श्रीकृष्ण ! आपकी कृपा से सारी पृथ्वी इस समय मेरे अधीन हो गई है। महाभारत सभापर्व का यह श्लोक स्पष्ट सिद्ध करता है कि पूरा संसार भारत के सामने, उसके बल, विद्या, सामर्थ्य के सामने नतमस्तक था ।
सुदर्शन चक्र - आश्चर्यजनक यन्त्र
क्षिप्तं क्षिप्तं रणे चैतत् त्वया माधव शत्रुशु ।
हत्वाप्रतिहतं संख्ये पाणिमेष्यति ते पुनः ।। - महाभारत, आदिपर्व
श्रीकृष्ण को आग्नेयमस्त्रं (सुदर्शन चक्र) देने वाले महान शिल्पी ब्राह्मणदेव कहते है - माधव ! युद्ध में आप जब जब इसे शत्रुओं पर चलाएंगे, तब तब यह उन्हें शीघ्र ही मारकर और स्वयं किसी वज्र से नष्ट न होकर पुनः आपके हाथ में आ जायेगा। (तीव्र गति से लक्ष्य भेदकर वायु को चीरता हुआ वापिस हाथ में आना । इस अस्त्र की महानता का इससे पता लगता है कि वर्तमान काल के परम बुद्धिमान वैज्ञानिक अब तक किसी ऐसे शस्त्र का आविष्कार नहीं कर पाए है ।)
इन सब प्रमाणों के बाद कौन कह सकता है कि आज से लगभग 5154 वर्ष पूर्व महाभारत के समय विमान विद्या भारत में नहीं थी। महाभारत युद्ध में हमारा सारा ज्ञान-विज्ञान और वैभव नष्ट हो गया था। विद्वान तथा शिल्पी लोग सब मारे गये थे। किन्तु आइये उसके हजारों साल बाद भी नमूने के तौर पर बची विज्ञान का दिग्दर्शन आपको करवा देते है।
500 ई. तक भी भारत में हवाई जहाज थे
आज से लगभग 1550 वर्ष पूर्व राजा भोज भारत के सम्राट थे। राजा भोज के काल में विद्वानों, शिल्पियों तथा लेखकों का बड़ा मान-सम्मान होता था। महाकवि कालिदास इन्हीं के समय हुए थे। इनके प्राचीन ग्रन्थ "भोजप्रबन्ध" तथा "समरांगणसूत्रधार" मैंने स्वयं पढ़े है। वही महर्षि दयानन्द भी भोजप्रबन्ध का ही प्रमाण देते हुए सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास 11 में लिखते है -
घट्येकया कोशदशैकमश्वः सुकृत्रिमो गच्छति चारूगत्या ।
वायुं ददाति व्यजनं सुपुष्कलं विना मनुष्येण चलत्यजस्त्रं ।। - भोजप्रबन्ध
अर्थात् राजा भोज के राज्य में और समीप ऐसे ऐसे शिल्पी लोग थे कि जिन्होंने घोड़े के आकार का एक यान यन्त्रकलायुक्त बनाया था। वह एक कच्ची घड़ी में ग्यारह कोश और 1 घंटे में साढ़े सत्ताईस कोश जाता था। वह भूमि और अन्तरिक्ष में भी चलता था। और दूसरा पंखा ऐसा बनाया था। वह बिना मनुष्य के चलाये कलायंत्र के बल से नित्य चला करता और पुष्कल वायु देता था। ये दोनों पदार्थ आज तक बने रहते, तो यूरोपियन इतने घमंड में न चढ़ जाते।"
धनुर्वेद के ढाई पन्ने
1857 के सन्यासी विद्रोह के मार्गदर्शक स्वामी दयानन्द (गोल मुख वाले बाबा) और उनके गुरु विरजानंद दंडी ही थे। इस विषय को फिर कभी लाऊंगा। लेकिन जब भारतीयों की आपसी फूट, अनुशासनहीनता तथा अस्त्र-शस्त्रों की कमी के कारण विद्रोह असफल हुआ तो स्वामी जी बहुत दुखित हुए थे। एक बार उन्होंने कहा था -
"सारे भारत में घूमने पर भी मुझे धनुर्वेद के ढाई पन्ने मिले है।
यदि मैं जीवित रहा तो सारा धनुर्वेद प्रकाशित कर दूंगा।"
स्वामी जी ने यही बात दोबारा नवम्बर 1878 ई. में कही थी। दुर्भाग्य से, स्वामी दयानन्द वेदों का भाष्य भी पूरा नहीं कर पाये थे कि षड्यंत्र पूर्वक जहर देता स्वामी जी के शरीर का अंत कर दिया गया था।
वेदों में हवाई जहाज
मूल रूप से संसारभर में फैली सभी विद्या वेदों से ही फैली है। वेदों में विस्तार से समुद्र, भूमि और अन्तरिक्ष में शीघ्र चलने के लिए यान विद्या के अनेकों मन्त्र है। हवाई जहाज कैसे होते है? हवाई जहाज की गति कितनी होती है? हवाई जहाज कैसे बनाये जाते है? इस विषय में इतना विस्तार से वेदों में है कि इस लेख के संक्षिप्त शब्दों में उसको उतारना संभव नहीं है। इस विषय के लिए आपको "ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका" पुस्तक का अध्याय "नौविमानादिविद्याविषयः" अवश्य पढ़ें। मेरा मानना है कि यह पुस्तक प्रत्येक हिन्दू के घर में होनी अत्यंत आवश्यक है। इसमें वेदों में कौन-कौन से विषय व विद्या है सबका Trailer दिखाया गया है। यदि आप थोड़े भी सामर्थ्यशाली है तो पूर्ण वैज्ञानिक, विशुद्ध वेदों को भी अवश्य मंगवावे। (सभी पुस्तकों के विषय में लेख के अंत में जानकारी दे दी गयी है।)
संक्षेप में वेद के कुछ एक मंत्र जिनमें यह विद्या विस्तार में है
जो नौकाओं से समुद्र में, रथों से पृथ्वी पर और विमानों से
आकाश में युद्ध करते है, वे सदा ऐश्वर्य को प्राप्त होते है ।
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यान इस प्रकार के होवे कि जिनसे एक ही दिन-रात में भूगोल,
समुद्र तथा अन्तरिक्ष मार्ग से तीन बार जा सकें।
- ऋग्वेद भाष्य, मन्त्र संख्या 1.34.2
यान ऐसे होने चाहिए कि जिनमें बैठकर ग्यारह (11) दिन में
ब्रह्माण्ड के चारों ओर जाया जा सके।
जो राजा शस्त्रास्त्र जानने वाले श्रेष्ठ धार्मिक शूरों, विमान आदि यानों के निर्माता शिल्पियों और विद्युदादि विद्याओं के विद्वानों की सत्कार-पूर्वक रक्षा करता है, उसका यश सूर्य-रश्मियों की भांति फैलता है। (जैसे अमेरिका आदि यूरोप देशों में वैज्ञानिकों, सैनिकों, विद्वानों को बहुत धन व मान-सम्मान मिलता है तो वो देश ईश्वर वाणी की बात यहाँ मानते है और आगे है।)
विमान निर्माण करने की विद्या निम्न वेद मन्त्रों में संक्षेप में बताई गयी है :-
(ऋग्वेद 1.164.48), ( ऋग्वेद 1.34.2), ( ऋग्वेद 1.34.9) आदि आदि।
भांप का इंजन
सारी दुनिया भांप के इंजन के आविष्कार को इस वैज्ञानिक युग की शुरुआत करने वाला मानती है। वह भी सर्वप्रथम वेदों में ही मिलता है। ऋग्वेद 1.34.10 के भावार्थ में वाष्प-निस्सारण के लिए यानों में एक स्थान के निर्माण का निर्देश दिया है। "जब यानों में जल और अग्नि को प्रदीप्त करके चलाते है, तब ये यान स्थानान्तर को शीघ्र प्राप्त करते है। उनमें जल और भांप के निकलने का एक ऐसा स्थान रच लेवें कि जिसमें होकर भाफ के निकलने से वेग (speed) की वृद्धि होवे।
हवाई जहाज से सम्बंधित वेदों में मन्त्र :-
(यजुर्वेद 21.6, 4.34, 33.73), ( (ऋग्वेद 1.85.4, 1.117.15, 1.116.4, 6.63.7, 1.34.12, 1.164.3, 1.108.1, 1.104.1, 1.34.7, 1.184.5, 1.16.7, 4.45.4, 1.85.7, ( अधिक मन्त्र के लिए देवनागरी वर्ण सीखे) १.८७.२, १.८८.१, १.९२.१६, १.१०६.१, १.१०६.२, १.११२.१३, १.११६.५, १.११७.२, १.११९.१, १.१२०.१०, १.१४०.१२, १.१५७.२, १.१६३.६, ११.६७.२, १.१६६.५, १.१८१.३, १.१८२.५, २.१८.१, २.१८.५, २.४०.३, ३.१४.१, ३.२३.१, ३.४१.९, ३.५८.३,८,९, ४.१७.१४, ४.३१.१४, ४.४३.२, ४.४५.७, ४.४६.४, ५.५६.६, ५.६२.४, ५.७७.३, ६.४६.११, ६.५८.३, ६.६०.१२, ७.३२.२७)
पुष्पक विमान - रामायण में विमान विद्या
रामायण में कुबेर के पुष्पक विमान का उल्लेख अनेकों स्थानों पर आया है। रावण ने इसे कुबेर को युद्ध में हराकर जीता था। अब कुछ लोग कहते है कि केवल 1 ही विमान का स्पष्ट वर्णन आया है, इसलिए विमान विद्या नहीं थी। ऐसे लोगों की पंगु बुद्धि पर तरस आता है। जिस कुबेर के पास पुष्पक जैसा विमान हो क्या रावण बिना वायुसेना के उससे युद्ध जीत सकता था?
अस्तु, उस समय दुनिया का सबसे उत्तम, सबसे सुंदर, शीघ्रगामी, स्वर्णमय, प्रसिद्द पुष्पक विमान ही था। इसलिए उसका वर्णन आया है। उस समय हवाई जहाज विद्या सामान्य थी। और सामान्य चीजों का बार बार उल्लेख नहीं होता। फिर भी रामायण में अनेक स्थलों पर हवाई जहाज की विद्या का उल्लेख दिख पड़ता है।
जब श्रीराम और लक्ष्मण मुर्छित भूमि पर थे तब रावण ने राक्षसियों से कहा जाओ सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर मरे हुए राम-लक्ष्मण के दर्शन करवा लाओ।
तत्पश्चात्
विमानं पुष्पकं तत्तु सन्निवर्त्यम् मनोजवम् ।
दीना त्रिजटया सीता लंकामेव प्रवेशिता ।।
राम-लक्ष्मण को दिखाकर त्रिजटा राक्षसी मन के समान द्रुतगामी पुष्पक विमान को लौटाकर दुःखियारी सीता को लंका में ले आई ।
इसीप्रकार युद्धसमाप्ति के बाद विभीषण ने श्रीराम के प्रस्थान के लिए पुष्पक विमान को तैयार करवाया।
क्षिप्रमारोह सुग्रीव विमानं वानरैः सह ।
त्वमप्यारोह सामात्यो राक्षसेन्द्र विभीषण ।।
श्रीराम की आज्ञा पाकर वानरों सहित विभीषण आदि भी पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या श्रीराम के राज्याभिषेक में गये (विचार करिये कितना बड़ा विमान था)।
अयोध्या जाते समय पुष्पक विमान द्वारा अनेकों स्थलों का निरिक्षण भी सभी ने किया जिसको आकाल हवाई निरिक्षण भी कह देते है।
सुंदरकांड में सुग्रीव अपने वनरक्षक दधिमुख से कहता है कि अब तुम जाकर पूर्ववत वन की रक्षा करो। और हनुमान आदि सैनिकों को शीघ्र ही मेरे पास भेज दो।
सुग्रीव के ऐसा कहने पर दधिमुख प्रसन्नतापूर्वक "आकाश मार्ग" से चला गया।
सुग्रीवेणैवमुक्तस्तु हृष्टो दधिमुखः कपिः ।
स प्रणम्य तान् सर्वान् दिवमेवोत्पपात ह ।।
इससे यह साफ पता चलता है कि न केवल पुष्पक विमान रामायण में आकाश मार्ग से जाने के लिए अनेकों व्यक्तियों के पास अपने अपने हवाई जहाज थे। यहाँ मैंने केवल संक्षेप में इसका प्रतिपादन किया है।
भारत में हवाई जहाज के अनेकों उदाहरण
प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ "गयाचिंतामणि" में मयूर (मोर) के आकार के विमानों का वर्णन किया गया है। दूसरी ओर शाल्व का विमान तो भूमि, आकाश, जल, पहाड़ पर आसानी से चलता था।
सलब्ध्वा कामगं यानं तमोधाम दुरासदम् ।
ययौ द्वारवतीं शाल्वो वैरं वृष्णीकृतं स्मरन् ।।
क्वचिद् भूमौ क्वचिद् व्योम्नि गिरिश्रृंगे जले क्वचिद् ।
अभिज्ञान शाकुंतल में भी हवाई जहाज के विषय का स्पष्ट उल्लेख और राजर्षि दुष्यंत के प्रयोग भासित होता है। विमानों के शिल्पी बौद्धकाल तक ही नहीं राजा भोज के काल तक भी थे, यह बात मेरे लेख के प्रमाणों से आप समझ ही गये होंगे। बौधिराज कुमार के महल के कारागार से एक कारीगर विमान लेकर भाग गया था। (Join Thanks Bharat Family On YouTube and Google)
पुत्र दारमरूस सकुनस्य कुच्छियं निसिदार्यत्वा ।
वातपातेन निक्सनित्वा प्लानि ।। - धम्मपाद -बोधिराज कुमार वत्थु
प्राचीन वैदिक विमान विद्या पर बाहरियों पहले अपने ही सवाल उठाते है। अपनों में भी सबसे पहले कुछ अम्बेडकरवादी, जो बदले की भावना में भरे हुए है। मुस्लिमों के आने के बाद जातिवाद फैला, हिन्दू धर्म में जातिवाद का कोई स्थान नहीं। इन विषयों पर मैंने एक के बाद एक विडियो thanks bharat youtube channel पर जब डाली तब जाकर पंडों के षड्यंत्रों को सभी हिन्दू समझे व सच्चे ऋषि-मुनियों में श्रद्धा बढ़ी। अब बोद्धग्रन्थ का उदाहरण देकर मैंने प्राचीन हवाई जहाज कला सिद्ध कर दी है। आशा है कि अब सभी मिलकर सोने के कटोरे में किसी विदेशी से भीख नहीं मांगेंगे। स्वाभिमान से सिर ऊँचा करके प्रत्येक ऋषि संतान को जीना है।
विमान शास्त्र
इसमें कोई संदेह नहीं कि लम्बी गुलामी तथा शत्रुभाव से प्राचीन संस्कृत साहित्य का यथासामर्थ्य विनाश किया गया है। इसी कारण विमान विषय पर विस्तार से जानकारी प्रदान करने वाला साहित्य लुप्तप्राय ही हैं। सौभाग्य से एक ग्रन्थ महर्षि भारद्वाजकृत “बृहद्विमानशास्त्र” brihad vimana shastra ग्रन्थ की प्राचीन प्रति मेरे हाथ लगी। एक प्रति बडौदा राजकीय पुस्तकालय में भी है क्योंकि इसी पुस्तकालय से सहायता आदि लेकर दिल्ली सरकार की संस्कृत अकादमी इस ग्रन्थ का संस्कृत में प्रकाशन करने की योजना बना रही है। अस्तु जो भी हो इस ग्रन्थ में अत्यंत उच्च व उन्नत कोटि की विमानविद्या vimana shastra का प्रतिपादन किया गया हैं।
लगभग 25 वर्ष पूर्व बैंगलोर के Institute of science के विमान विभाग (Aeronautics Division) के पांच विद्वान संशोधकों (Research Scholars) का लिखा पत्र मद्रास के आंगल दैनिक Tha Hindu में प्रकाशित हुआ था। उस पत्र में उन्होंने लिखा था कि "भरद्वाज मुनि द्वारा लिखित "बृहदविमानशास्त्र" पुस्तक में वर्णित विविध विमानों में से 'रूक्मि' प्रकार के विमान की उड़ानविधि समझ आती है। उस विधि से आज भी उड़ान भरी जा सकती है। किन्तु अन्य विमानों का ब्यौरा समझ नहीं आता।
प्राचीन संस्कृत ग्रंथों के शब्दों, परिभाषाओं तथा सिद्धांतों को आज समझना अत्यंत दुर्लभ है। क्योंकि सैकड़ों सालों से उनपर अनुसन्धान नहीं हुआ, उनका अभ्यास नहीं हुआ। किन्तु फिर भी वर्तमान काल में भी १८९५ में इसी ग्रन्थ को पढ़कर एक भारतीय ने ही विमान बनाने की नींव डाली थी। (यह पुस्तक मैंने महीनों पहले अपनी दूसरी वेबसाइट www.vedicpress.com पर free download के लिए उपलब्ध करवा दी थी।
शिवकर बापूजी तलपड़े
बहुत लोग पूछते है कि राहुल आर्य भाई क्या शिवकर बापूजी तलपडे पर Rajiv Dixit जी ने जो कुछ थोड़ा बहुत कहा है वो ठीक है या गलत? मेरे विचार से शिवकर बापूजी तलपडे इतिहास के सबसे महत्पूर्ण व्यक्तियों में से एक है। किन्तु इसके बारे में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है। इस महान व्यक्ति के ऊपर एक फिल्म भी बनी थी जिसका नाम "हवाईजादा" था। हालांकि फिल्म को रुचिकर बनाने के लिए संस्कृत के पंडित, आर्यसमाज काकड़वाड़ी के सदस्य शिवकर बापूजी तलपदे को गलत रूप से प्रदर्शित किया। अस्तु, अब तो दुनिया भर की मीडिया में ये विषय आ चुका है कि "क्या विमान का आविष्कार एक भारतीय ने किया?" शिवकर बापूजी तलपदे ने विमान बनाने की प्रयोग शाला ऋषि दयानन्द से प्रभावित होकर १८८२ में खोली थी। स्वामी दयानन्द के वेद भाष्य को पढ़कर, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका को पढ़कर उन्होंने प्रथम विमान का मॉडल तैयार किया और दुनिया का प्रथम विमान १८९५ में मुंबई के जुहू बीच पर उड़ाया। यह कैसे हो सकता है कि ऐसा व्यक्ति कोई पुस्तक, लेख व अपनी खोज का कोई मॉडल न छोड़कर जावे। निश्चित रूप से शिवकर बापूजी तलपडे जी से अंग्रेजों ने विमान को उन्नत बनाने के लिए आर्थिक मदद देने के बहाने मॉडल ले लिए होंगे। वही से विमान बनने पर लगे wright brothers को वो दस्तावेज मिले तथा खोज का श्रेय उनको ही दे दिया गया।
बाद में अथाह धन के बल पर यूरोप वालों ने बड़े बड़े विमान बनाये और आर्य शिवकर बापूजी तलपडे को भूला दिया गया। इस बात से तलपडे जी को बहुत आघात लगा। १९१६ ई. में सुब्रह्मण्ययम शास्त्री से "बृहदविमानशास्त्र" को समझने में मदद लेने लगे। वो १९१५-१९१७ तक मरुत्शिखा नामक विमान पर काम कर रहे थे। अबकी बार वो एक अति उन्नत विमान बनाने की सोच रहे थे जिसको जानकर दुनिया झूठे आविष्कारक राइट ब्रदर्स को भूल जाये। लेकिन दुर्भाग्य से वो १७ सितम्बर १९१७ को उनका देहावसान हो गया। कुछ आर्यसमाजी विद्वानों का मानना है कि वो विमान बनाने के काफी नजदीक थे व उनकी मृत्यु के पीछे भी कोई षड्यंत्र था। इस विषय की कुछ जानकारी विकिपीडिया पर भी उपलब्ध होती है जो हमारे आर्य विद्वानों ने ही एडिट की हुई है। आर्यसमाजियों के अतिरिक्त सभी हिन्दू इस विषय पर चुप है। क्या भारत के स्वाभिमान को जगाने का दायित्व स्वामी दयानन्द, शिवकर बापूजी तलपडे आदि का ही था?
हवाई जहाज के इतिहास का सार
ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री ‘लार्ड पार्मस्टन ‘ 12 फ़रवरी, 1958 को ब्रिटिश लोकसदन में कहते है कि "जब आर्यावर्त में सभ्यता व संस्कृति अपने शिखर पर पहुँच चुकी थी, तब यूरोप वाले नितांत जंगली थे।"
इसमें कोई संशय नहीं कि मनुष्य ने सर्वप्रथम भारत देश में ही विज्ञान व कला का अरुणोदय देखा। जितनी भी विद्या आदि भूगोल में फैली है उनके पीछे आर्य प्रजाति व आर्य संस्कृति ही है। इस विषय पर अत्यंत महत्पूर्ण निम्न लिखित लेख मेरे भविष्य में आने वाले है:-
- प्राचीन भारतीय विज्ञान
- जर्मनी से शुरू हुई इस विज्ञान यात्रा के पीछे का इतिहास
- हमारा विज्ञान समाप्त कैसे हुआ?
- विमानों आदि के अवशेष उपलब्ध क्यों नहीं है?
- हिटलर - अच्छा या बुरा?
आशा करता हूँ आपको यह लेख अच्छा, स्वाभिमान जगाने वाला व प्रमाणिक लगा होगा। इस लेख के link को अपने सभी परिचितों के पास अवश्य भेजें। यदि आपमें से कोई महानुभाव इस लेख को आंग्ल भाषा (english) में translate करना चाहता है तो thanksbharatmaa@gmail.com पर संपर्क करें।
पुस्तकें
मेरा मानना है कि जब तक प्रत्येक भारतीय स्वयं अध्ययन करना प्रारंभ नहीं करता है तब तक कोई लाभ नहीं होवेगा। 10-20 लोगों से यह कार्य संभव नहीं है। हजारों-लाखों लोगों को अपनी योग्यता बढ़ानी होगी। फिर सभी योग्य लोगों को मैदान में उतारना होगा। जब लाखों स्वाध्याय वाले, योग्य, ज्ञानवान लोग एक साथ कार्य में लगेंगे तो कुछ ही समय में परिवर्तन दिखने लगेगा और देखते ही देखते पूरा देश बदल जायेगा। और इसके लिए प्राचीन व अमूल्य ग्रंथों को पढ़ना पड़ेगा। ग्रंथों को समझना पड़ेगा। प्रश्न उठता है ग्रन्थ कहाँ से आये? कुछ पुस्तकें तो आज भी बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध है। जिनमें से 3 विशुद्ध ग्रन्थ आप amazon से ऑनलाइन विक्रय कर सकते है।
- चारों वेद (हिंदी-संस्कृत) - केवल महर्षि दयानन्द का भाष्य ही लेवें
- ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका
- सत्यार्थ प्रकाश
कुछ सालों तक हमने स्वयं लोगों को प्राचीन पुस्तकों की सैकड़ों pdf फ्री में दे लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। फिर हमने कुछ थोड़ा सा शुल्क लेकर 125 अमूल्य पुस्तकें देनी प्रारंभ की। अब तक 15-20 लोगों ने ही उनको प्राप्त किया लेकिन वो थोड़े ही बहुत के समान निकले। अस्तु, यदि आप अमूल्य पुस्तकों को थोड़ा सा शुल्क देकर लेना चाहते है तो अभी आप ले सकते है। नाममात्र के शुल्क से आपका स्वाभिमान व पुस्तकों के प्रति श्रद्धा बनी रहेगी व इन्हें गली-कुचों में मिलने वाली नहीं समझेंगे। साथ ही साथ विधर्मी इनको प्राप्त करके ग्रंथों से इधर उधर की बातें निकालकर विरोध नहीं करेंगे। अन्यथा बिलकुल निशुल्क में अत्यंत हानि की सम्भावना है। ये पुस्तकें आपको pdf में soft copy मिलेंगी। आप इनको free में download करके print करवा सकते हो।
यदि Thanks Bharat के कारण आपके जीवन में कोई सकारात्मक परिवर्तन आया है तो हमारे "About" में जाकर कमेंट अवश्य करें। आपका वह अनुभव सदैव इस वेबसाइट की शोभा बढ़ाएगा।https://www.thanksbharat.com यह आपकी वेबसाइट है। आपके परिवार की वेबसाइट है। अपनी facebook, instagram, twitter, youtube व अन्य सभी social platforms पर वेबसाइट के column में इसी वेबसाइट को अपनी वेबसाइट डालें।यदि आपकी अथवा आपके किसी परिचित की कोई वेबसाइट है तो इस लेख के लिंक को उस वेबसाइट की किसी पेज अथवा लेख में अवश्य डालें। इसके अतिरिक्त अपनी वेबसाइट से यह भी अनुरोध करें कि www.thanksbharat.com पर एक बार visit अवश्य करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक गूढ़ ज्ञान पहुँच सकें और हम मिलकर विधर्मियों को मात दे सकें। यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है।आशा करता हूँ हमें अपने परिवार का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा।
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www.vedicpress.com/hinduism-books/
मैं उन सभी का आभारी हूँ जिनके सहयोग से समाज का कार्य अनवरत् रूप से चल रहा है। और पिछले कुछ माह से मैं भी इस योग्य हुआ हूँ कि आवश्यकता पड़ने पर, समाज का कार्य करने वालों की नाममात्र आर्थिक सहायता कर पा रहा हूँ।
इति हस्तलेखे ।।
राहुलार्यः
पौष, शुक्ल पंचमी
२०७५ विक्रमाब्द ।।
विशेष :-
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